विश्व बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष : कामगार बच्चे हमें क्यों नहीं दिखते..?
विश्व बालश्रम निषेध दिवस पर विशेष : कामगार बच्चे हमें क्यों नहीं दिखते..? कुछ परिस्थितियां हमें दिखाई नहीं देती, कुछ देखना नहीं चाहते, और कुछ के इतने आदी हो जाते हैं कि वह हमें असामान्य दिखाई ही नहीं देती। उन्हें हम सामाजिक स्वीकृति देकर अपने जीवन का एक हिस्सा मान बैठते हैं, भले ही वह गड़बड़ क्यों न हो। जब कोई गड़बड़ी हम स्वीकार नहीं करते हैं तो स्वाभाविक रूप से उसे सुधारने की कोशिशें भी रस्मअदायगी की तरह ही होती हैं। उनकी याद हमें किसी खास दिन पर आती है या फिर कोई बहुत बड़ी घटना होने पर। बाल मजदूरी का मुद्दा भी ऐसा ही है। वैसे बच्चों से जुड़े सारे मुद्दों के हालात ही ऐसे हैं जिन पर समाज में बहुत कम संवाद हैं, वह राजनीतिक रूप से हाशिए पर हैं, लेकिन बाल मजदूरी का मुद्दा तो ऐसा है जो दिखाई देते हुए भी अनदेखा है। इसके तमाम उदाहरण देश के कोने—कोने से हमारे सामने जब—तब आते हैं। एक मिसाल लीजिए 18 जुलाई 2014 को मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार से सवाल पूछा गया कि प्रदेश में कितने बाल श्रमिक काम कर रहे हैं। जवाब सुनकर उस पर विश्वास कर पाना कठिन है। इस जवाब के मुताबिक प्रद